एक दिन चलो, फिर बैठेंगे -
कुछ तुम कहना,
कुछ मैं सुनूँगी,
युहीं अपने फ़साने बयां करेंगे।
पूरी करना वो दास्ताँ तुम्हारी
जो शुरू तो हुई थी,
पर चादर की सलवटों में
रह गयी है अधूरी।
हाँ सच है की बातें हुईं
कुछ ऐसे, कुछ वैसे, मुलाकातें भी हुईं,
पर इधर-उधर की बातों में
जाने क्यों, वो बात ही न रही।
इस बार जाम नही,
चाय की चुस्कियां भऱेंगे ,
गिले-शिकवों की पोटली को दफ़्न कर
वही पुरानी कहानी मुक्म्मल करेंगे।
आँख मिचोली के इस खेल को
चलो अब बस बंद करेंगे -
सुकूँ की सांसे लेंगे,
और सादग़ी से ऐतबार करेंगे।
दर्द तुम्हे भी है,
और डर मुझे भी!
इन छलनी टुकड़ों को बटोर कर
एक दिन चलो, फिर बैठेंगे।
चलो फिर एक बार गुफ़्तगू करेंगे...
कुछ तुम कहना,
कुछ मैं सुनूँगी,
युहीं अपने फ़साने बयां करेंगे।
पूरी करना वो दास्ताँ तुम्हारी
जो शुरू तो हुई थी,
पर चादर की सलवटों में
रह गयी है अधूरी।
हाँ सच है की बातें हुईं
कुछ ऐसे, कुछ वैसे, मुलाकातें भी हुईं,
पर इधर-उधर की बातों में
जाने क्यों, वो बात ही न रही।
इस बार जाम नही,
चाय की चुस्कियां भऱेंगे ,
गिले-शिकवों की पोटली को दफ़्न कर
वही पुरानी कहानी मुक्म्मल करेंगे।
आँख मिचोली के इस खेल को
चलो अब बस बंद करेंगे -
सुकूँ की सांसे लेंगे,
और सादग़ी से ऐतबार करेंगे।
दर्द तुम्हे भी है,
और डर मुझे भी!
इन छलनी टुकड़ों को बटोर कर
एक दिन चलो, फिर बैठेंगे।
चलो फिर एक बार गुफ़्तगू करेंगे...
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